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Monday, May 20, 2013

यादों का सफ़र


रात के अँधेरे में जब पीछे छुटे सारे गम !

मैं इन लम्हों में याद सभी को करता हूँ 

कैसे कैसे जीवन बीता , आओ तुम्हे मैं बतलाता हूँ  

 

इतने लम्हे बीत गए हैं पर लगता है अब और कल  

सबके चेहरे याद मुझे हैं जैसे देखा हो इस पल  

 सुना है बस उस पल जीवन खुद को दोहराता है

जिन के साथ हो वक़्त बीता उनको उनको दिखलाता है  

हमने सोचा ना जाने तब कितना हमको वक़्त मिले  

थोडा थोडा अब ही मैं सबसे यूँ ही मिल आता हूँ  

याद सभी को मैं कर लूँ  

वक़्त  अभी से दोहराता हूँ  

 

बीता है जो कल बाधाएं थी उसमें हर पल  

बाधाओं का सीना तोडा , सीमाओं को पीछे छोड़ा  

मेरा जीवन जैसे दर्पण , तुमने भी इसमें कल देखा  

कुछ भी ना मैं अदभुत मैं ना बोला , सबने है ये पल देखा  

जीवन भी है अजब पहेली  

इसमें हर पल उथल पुथल ,भीड़ में भी मैं अकेला और अकेले में चहल पहल   

जितने इसमें सन्नाटे हैं और जितनी हैं ख़ामोशी , उतनी ही आशाएँ हैं और भरी हैं हँसी ठिठोली  

 

यादों मैं हैं जब हम चलते , क्या हैं हम कहीं पहुँचते ?

वक़्त के फासले , कैसी ये दूरियाँ , क्या करती हैं कम यादें ये मजबूरियां 

यादों की इस दुनिया में जितना देखा था , अब उससे जयादा दिखा  

इतना वक़्त बीत गया था फिर भी कुछ ऐसा लगा  

हाँ तुमको भी और तुमको भी सबको मैंने देखा है  

पर जैसे मैंने तुमको देखा , क्या तुमने मुझको देखा है  

 

भोर हुई तो रेलम पेल , गाड़ियों में भरा है तेल  

मेरी मानो कम ही तानो , थोडा सा सब वक़्त निकालो  

ना जाने हमको उस पल , कितने बचे हो पल  

तुम भी सब से मिल आओ , थोडा थोडा दोहराओ  

 

ना रचेता ना कवि , मुझको तो है गति प्रिय  

लेकिन फिर भी थोडा थोडा सबको अब मैं जतलाता हूँ  

कितना हमको वक़्त मिले , मैं अपना जीवन दोहराता हूँ  

 

 

 

 

 

 

 

 

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